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कब है कालाष्टमी? जानिए भगवान शिव के अवतार कालभैरव की उत्पत्ति की कथा

हिंदी पंचांग के अनुसार हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी मनाई जाती है। फाल्गुन मास में 23 फरवरी को कालाष्टमी मनाई जाएगी। इस दिन भगवान शिव के उग्र रूप काल भैरव की पूजा की जाती है। अघोरी समाज के लोग कालाष्टमी को उत्सव के रूप में मनाते हैं। कहा जाता है कि गुप्त नवरात्रि के अलावा कालाष्टमी की रात को तांत्रिक साधक तंत्र मंत्र करते हैं। कालाष्टमी के दिन तंत्र मंत्र सीखने वाले साधकों की सिद्धि होती है। यह एक धार्मिक मान्यता है कि कालाष्टमी के अनुष्ठानों को करने से व्रत के जीवन से दुख, दरिद्रता, समय और परेशानी दूर हो जाती है। इस दिन शिवालयों और मठों में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है, जिसमें भगवान शिव के रूप में काल भैरव देव का आह्वान किया जाता है। उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर में विशेष पूजा की जाती है। साथ ही महाभस्म की आरती की जाती है। वहीं शिव के उपासक अपने घरों में उनकी पूजा करते हैं और उनकी प्रसिद्धि, प्रसिद्धि, सुख और समृद्धि की कामना करते हैं। आइए जानते हैं कालाष्टमी की तिथि और पौराणिक कथा।

कालाष्टमी तिथि
अष्टमी तिथि प्रारंभ: 23 फरवरी, बुधवार, सायं 04:56 बजे
अष्टमी तिथि समाप्त: 24 फरवरी, गुरुवार, दोपहर 03:03 बजे

कालाष्टमी से जुड़ी पौराणिक कथा
शिवपुराण में भगवान शिव के विभिन्न अवतारों का वर्णन मिलता है। इस कथा के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु जी में में श्रेष्ठता को लेकर बहस छिड़ गई। सभी देवताओं के साथ ब्रह्मा जी और विष्णु जी भगवान भोलेनाथ के पास कैलाश पहुंचे। भोलेनाथ ने सबकी बात सुनी और तुरंत ही भगवान शिव जी के तेजोमय और कांतिमय शरीर से ज्योति निकली, जो आकाश और पाताल की दिशा में बढ़ रही थी। तब महादेव ने ब्रह्मा और विष्णु जी से कहा आप दोनों में जो सबसे पहले इस ज्योति की अंतिम छोर पर पहुंचेंगे, वही सबसे श्रेष्ठ है। इसके बाद ब्रह्मा और विष्णु जी अनंत ज्योति की छोर तक पहुंचने के लिए निकल पड़े। कुछ समय बाद ब्रह्मा जी और विष्णु जी वापस लौटे। विष्णु जी ने तो सच बता दिया लेकिन ब्रह्मा जी ने झूठ बोल दिया कि उन्हें छोर प्राप्त हो गया।
भगवान भोलेनाथ सत्य जानते थे उन्होंने विष्णु जी को सर्वश्रेष्ठ घोषित कर दिया। इस बात से ब्रह्मा जी क्रोधित हो गए और उन्होंने शिवजी को अपशब्द कह दिए। इस बात पर शिवजी को क्रोध आ गया और शिवजी ने उस क्रोध में अपने रूप से भैरव को जन्म दिया। इस भैरव अवतार का वाहन काला कुत्ता है। इनके एक हाथ में छड़ी है। इस अवतार को ‘महाकालेश्वर’ के नाम से भी जाना जाता है इसलिए ही इन्हें दंडाधिपति कहा गया है। भगवान भोलेनाथ का यह उग्र रूप देखकर देवतागण घबरा गए। भैरव ने क्रोध में ब्रह्माजी के 5 मुखों में से 1 मुख को काट दिया, तब से ब्रह्माजी के पास 4 मुख ही हैं। ब्रह्माजी ने भैरव बाबा से माफी मांगी तब जाकर भगवान शिव अपने असली रूप में आए।
परंतु ब्रह्माजी का सिर काटने के कारण भैरवजी पर ब्रह्महत्या का पाप लग गया जिस वजह से भैरव बाबा को कई दिनों तक भिखारी की तरह रहना पड़ा। कई वर्षों बाद वाराणसी में भैरव बाब का दंड समाप्त हुआ इसी कारण उनका भैरव बाबा को ‘दंडपाणी’ के नाम से जाना जाता है।

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