रामनगर पंचायत सरपंच चुनाँव परिणाम पर हाइकोर्ट द्वारा दिए गए स्टे का मामला । हाइकोर्ट कोर्ट के पास पहुँची रिटर्निंग अधिकारी के हस्ताक्षयुक्त चुनाँव चिन्ह आवंटन की 2 अलग-अलग सूची । कोन सी है फर्जी और किसने शासकीय दस्तावेजो में फर्जीवाड़ा कर की है धोखाधड़ी ? क्या दोषी का पता लगाकर उसे मिलेगी वाजिब सजा ? पूरा मामला समझने के लिए गिरीश न्यूज़ की यह खबर देखे-
आगर मालवा-
मप्र त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के तहत बडौद जनपद की रामनगर पंचायत में हुए सरपंच पद के चुनाव में आए परिणाम की घोषणा करने पर इंदौर की हाइकोर्ट बेंच ने स्टे लगा दिया है ।
ग्राम पंचायत रामनगर में सरपंच के चुनाँव के दौरान मतदान पर्ची और उम्मीदवार को प्रारंभ में मप्र निर्वाचन नियम की धारा 38(1) के फॉर्म 8(k) के तहत उपलब्ध बनाई गई सूची और उस पर आवंटित किए गए चुनाँव चिन्ह में परिवर्तन के आरोप को प्राथमिक रूप से सही पाए जाने पर यह स्टे दिया गया है ।
पंचायत के कुल 7 उम्मीदवारों की जब मप्र निर्वाचन नियम की धारा 38(1) के फॉर्म 8(k) के तहत सूची बनाई गई और उस अनुसार आवंटित किए गए चुनाँव चिन्ह में पहले पीड़ित उम्मीद्वार श्यामकुंवर बाई का नाम क्रमांक 6 पर था और उनका चुनाँव चिन्ह अनाज बरसाता किसान था वहीं अन्य प्रत्याशी शुभकुवंर का नाम क्रमांक 5 पर होकर उनका चुनाँव चिन्ह ताला चाबी था पर मतदान दिवस पर मतदान पर्ची पर श्यामकुंवर का नाम क्रमांक 5 नंबर पर आ गया और उनका चुनाँव चिन्ह ताला चाबी हो गया वहीं शुभकुवंर का नाम क्रमांक 6 पर आ गया और उनका चुनाव चिन्ह अनाज बरसाता किसान हो गया इसके बाद इस प्रकार क्रमांक एवं चुनाँव चिन्ह बदलने पर श्यामकुंवर बाई ने चुनाँव का बहिष्कार कर दिया था ।
अब इस पूरे मामले का सबसे रोचक बिंदु यह है कि मप्र निर्वाचन नियम की धारा 38(1) के फॉर्म 8(k) के तहत उम्मीदवारों को जो चुनाँव चिन्ह आवंटित किया जाता है उसकी 2 सूचियां कोर्ट के सामने आई है ।
उनमें से एक सूची जिसके आधार पर पीड़ित श्यामकुंवर बाई ने पिटीशन लगाई है उस पर जनपद बंदोड़ के रिटर्निंग अधिकारी अनिल कुशवाह और असिस्टेंट रिटर्निंग अधिकारी सीईओ जनपद बडौद दोनों के हस्ताक्षर है इस सूची में पिटीशनर का नाम कुल 7 उम्मीदवारों की सूची में 6 नंबर पर है और उसे अनाज बरसता किसान चुनाँव चिन्ह आवंटित किया गया है वहीं कोर्ट में रिस्पॉडेन्ट द्वारा अपने बचाव में रिटर्निंग अधिकारी के द्वारा मप्र निर्वाचन नियम की धारा 38(1) के फॉर्म 8(k) के तहत एक दूसरी सूची प्रस्तुत की गई है उसमे सिर्फ रिटर्निंग अधिकारी के हस्ताक्षर है में पिटीशनर का नाम कुल 7 उम्मीदवारों की सूची में क्रमांक 5 पर है और इसमें चुनाँव चिन्ह ताला चाबी आवंटित करना बताया गया है जिसे कि मतदान पर्ची के अनुसार तैयार किया गया है ।
साफ है कि इन दोनों सूचियों में से एक सूची फर्जी है और जिसे कानून की भाषा मे यदि कहे तो किसी के द्वारा एक महत्वपूर्ण शासकीय दस्तावेज की कूट रचना इसलिए कि गई है कि इससे किसी के साथ धोखाधड़ी कर उसे हानि पहुचाई जा सके ।
मतलब अब यह मामला सिर्फ निर्वाचन के वैधता तक सीमित नही रहा है बल्कि एक महत्वपूर्ण शासकीय दस्तावेज की कूट रचना तक पहुँच गया है ।
यही मामला बडौद जनपद की पंचायत ढाबला सोन्ध्या में भी सामने आया था जहां इसी प्रकार के दो 8(k) फार्म सामने आए थे जिसकी प्रति गिरीश न्यूज़ के पास सुरक्षित है पर मतदान के एक दिन पहले शाम को यह गड़बड़ी पता चलने पर वहां किसी तरह मामला मैनेज कर लिया गया था ।
कहते है ना कि यदि एक गलती हो जाए तो उसे समय पर स्वीकार कर लेना चाहिए और आप यदि ऐसा नही करेंगे तो हो सकता है कि उस गलती को छुपाने के लिए की गई दूसरी गलती और बड़ा मुद्दा बन सकती है, सम्बंधित प्रकरण में कुछ ऐसा ही प्रतीत होता दिखाई दे रहा है ।
हालांकि जिला निर्वाचन अधिकारी ने रिटर्निंग अधिकारी को शोकाज नोटिस जारी कर फॉर्म 8(k) तहत जारी 2 सूचियों के बारे में स्पस्टीकरण मांगा है वहीं इसमें भी सबसे रोचक यह तथ्य है कि हाईकोर्ट एडव्होकेट गौरव श्रीवास्तव द्वारा प्रस्तुत पिटीशन के बाद खुद रिटर्निंग अधिकारी ने पीड़ित पक्ष को नोटिस जारी कर यह पूछा है कि आपके पास चुनाँव चिन्ह आवंटन की जो पहली सूची है जिसमे स्वयं रिटर्निंग अधिकारी और सहायक रिटर्निंग अधिकारी के हस्ताक्षर है वह आपके पास कैसे आई ?
स्वभाविक है कि पीड़ित पक्ष ने कोर्ट में यह पंचायत के मंत्री के शपथ पत्र के साथ बताया है कि यह सूची उन्हें किस तरह मिली थी तो अब आप समझ सकते है कि यह मामला कहाँ तक पहुँच सकता है ।
हम आपको बता दे कि पीड़ित पक्ष को जनपद के जिस व्हाट्सग्रुप से उठाकर पंचायत के मंत्री द्वारा फार्म 8(k) उपलब्ध कराया गया था उसी पीडीएफ में ग्राम पंचायत उँचवास, टोंकड़ा, ककडेल, अम्बा बंदोड़, बेहका आदि पंचायतों के भी 8(k) फार्म जारी किए गए थे और सभी फ़ार्मो में जिस तरह से रिटर्निंग अधिकारी की डबल सील लगी है और उनके हस्ताक्षर है वह ठीक एक समान है इससे आसानी से समझा जा सकता है कि पीड़ित पक्ष का दावा काफी मजबूत है ।
खैर जो भी हो पर प्रथम द्रष्टया ये किसी जिम्मेदार का एक बड़ा गैर जिम्मेदाराना और तानाशाही पूर्ण रवैया दिखाई देता है जो उनकी इस सोच को उजागर करता है कि आम व्यक्ति को कितनी भी पीड़ा उठाना पड़े पर हम हमारे काम को किसी भी तरह निपटा कर अपना रिपोर्ट कार्ड सुधार ले ।
पूरे प्रकरण में अब सबसे पहले हाइकोर्ट और उसके बाद पीड़ित पक्ष या सामाजिक कार्यकर्ता यह तय करेगा कि इस प्रकरण को किस सीमा तक खेचा जाए पर समाज का हित इसमें ही है कि इस प्रकार की कार्यवाही का जो भी दोषी हो उसे जरूर वाजिब सजा मिलनी चाहिए ।