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अपनी 20 सूत्रीय मांगों के समर्थन में वनकर्मियों ने मुख्यमंत्री के नाम दिया ज्ञापन, अपने साथ पिछले कई वर्षों से हो रही वादा खिलाफी को उठाते हुए मंन्त्री और नेताओं पर लगाया वन माफियाओं को संरक्षण देने का आरोप

अपनी 20 सूत्रीय मांगों के समर्थन में वनकर्मियों ने मुख्यमंत्री के नाम दिया ज्ञापन
अपने साथ पिछले कई वर्षों से हो रही वादा खिलाफी को उठाते हुए मंन्त्री और नेताओं पर लगाया वन माफियाओं को संरक्षण देने का आरोप

आगर मलवा– जिले में आज अपनी 20 सूत्रीय मांगों के समर्थन में वनकर्मियों ने कलेक्टर कार्यलय पहुँचकर मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन दिया है ।
ज्ञापन में वनकर्मियों ने बताया कि म.प्र. के विभिन्न वनांचलों में पदस्थ कार्यपालिक वनकर्मचारी जो कि समाज के अंतिम बिन्दु पर रहकर 24 घण्टे वन एवं वन्यप्राणियों की सुरक्षा में तपती दोहपर, कड़कड़ाती ठण्ड एवं घनघोर वर्षा में समाज एवं परिवार से दूर रहकर दबंगता के साथ वनों की सुरक्षा में लगे हुए हैं। इनकी मेहनत त्याग, समर्पण से ही पूरे भारत वर्ष में सर्वाधिक वन म.प्र में पाये जाते हैं। इतनी कठिन सेवा करने वाले वनकर्मचारियों का उनके समान विभागों के कर्मचारियों से एवं भारतवर्ष में कार्यरत वन विभाग के कर्मचारियों से वेतनमान न्यूनतम है, जो चिन्ता का विषय होकर मनोबल गिराने वाला है।
म.प्र. के वनांचनल में पदस्थ कर्मचारियों की वेतन विसंगति वर्षों पुरानी है। जिसके संबंध में अपर मुख्य सचिव वन श्रीमति रंजना चौधरी के द्वारा वर्ष 2008 में लिखित समझौता शासन द्वारा संघ से किया गया था, जो पूरा नहीं किया गया। इसी प्रकार दिनांक 04.05.2018 को माननीय वनमंत्री गौरीशंकर शेजवार के अध्यक्षता में वन सचिव केके सिंह एवं श्री रवि श्रीवास्तव प्रधान मुख्य वन संरक्षक वनबल प्रमुख आर. के. गुप्ता, अ.प्र.मु.व.सं. ( प्रशासन -2 ) केप्टन अनिल खरे द्वारा भी संघ के साथ लिखित आश्वासन दिये जाने के पश्चात् भी वेतन विसंगति को दूर नहीं किया गया। जब पूरे म.प्र. में भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा एवं भारतीय वनसेवा के वेतनमान एक जैसे है। साथ ही राज्य स्तर पर राज्य स्तरीय प्रशासनिक सेवा, राज्य स्तरीय पुलिस सेवा एवं राज्य स्तरीय वनसेवा के वेतनमान भी समान है, परन्तु राजस्व विभाग एवं पुलिस विभा की तुलना में सबसे कठिन कार्य करने वाले वनकर्मचारियों के वेतनमान न्यूनतम होने से चिंताजनक है।
म.प्र. वन कर्मचारी संघ द्वारा उपरोक्त मांगो के संबंध में कई बार आंदोलन किये गये एवं शासन द्वारा लिखित में समझौता किया गया । तत्कालीन वनमंत्री सरताज सिंह द्वारा घोषणा की गई तथा माननीय अवनी वैश्य अपर मुख्य सचिव म.प्र. शासन द्वारा भी आश्वासन दिया गया । तत्कालीन श्री राय अपर मुख्य सचिव वन, श्री बीपी सिंह अपर मुख्य वन, श्री खांडेकर अपर मुख्य सचिव वन एवं माननीय वनमंत्री गौरशंकर जी शैजवार द्वारा भी वनकर्मचारियों की वेतन संबंधि समस्याओं का निराकरण का आश्वासन दिया गया परन्तु आज दिनांक तक वतेन संबंधी समस्याओं का निराकरण न होने से वनकर्मचारी आंदोलन की राह पर निकल पड़े है, जिसके कारण वन एवं वन्यप्राणियों की पूर्ण सुरक्षा का दायित्व शासन का होगा।

मंन्त्री और राजनेताओं पर लगाया गंभीर आरोप

वनकर्मियों ने ज्ञापन में बताया कि म.प्र. में वन कर्मचारी अपने दायित्वों के पूर्णतः निभाने का प्रयास कर रहा है। परन्तु राजनेताओं एवं मंत्रीगण द्वारा वन, वन्यप्राणी / वन भूमि पर अतिक्रमण /अवैध खनन को संरक्षण प्रदान किया जा रहा है। समय-समय पर मनोबल गिराने वाली टिप्पणी की जाकर ईमानदारी से कार्य करने वाले कर्मचारी को प्रताड़ित किया जा रहा है। कोई चोर कह रहा है, तो कोई बकरी चोर कह रहा है । तो कोई कह रहा है इनके हाथ-पैर तोड़ दो। वनकर्मचारी को न तो शासन का संरक्षण है, न ही प्रशासन का संरक्षण है एवं वेतनमान एवं सुविधा भी भारतवर्ष में सबसे कम है। म.प्र. से अलग हुए प्रदेश छत्तीगढ़ में भी वनकर्मचारियों का वेतन म.प्र. से ज्यादा है । ज्ञापन देने के दौरान वनकर्मी कन्हैया लाल परमार जिलाध्यक्ष म. प्र. वन कर्मचारी संघ आगर,लाखन सिंह राजपुत, श्री चंदर सिंह पंवार, वन परिक्षेत्र अधिकारी आगरपदम परमार,पिरूलाल खाटकी, सियाराम शर्मा,कमल सिंह मालवीय असदउल्ला खां राकेश कुम्भकार ,छगन परमार,मंयक श्री वास्तव,प्रदीप मंडलोई, ,विपिन शर्मा , सुरेश प्रजापति, संजय गौर, जितेन्द्र गौर, शैलेश उपाध्याय, नरेंद्र सक्सेना,अर्जुन चौहान,प्रमे बेगा, दिलीप चौहान रमेश, बाल किशन गवली अशोक गवली,आदि उपस्थित रहे ।

 

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