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नायब तहसीलदार को पटवारी के पद पर डिमोशन करने का बहुचर्चित मामला *” यह है पूरे प्रकरण की वास्तविकता “*

आगर मालवा-
जिले में पदस्थ नायब तहसीलदार अरुण चंद्रवंशी को डिमोशन कर उन्हें पटवारी बनाए जाने का मामला जब से सामने आया है तब से यह पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बन चुका है।
हालांकि जब से कलेक्टर आगर मालवा राघवेंद्र सिंह द्वारा अरुण चंद्रवंशी को पटवारी के रूप में उज्जैन जिले के लिए रिलीव करने का आदेश सामने आया है तब से कई समाचार पत्रों एवं चैनल पर उनकी खबर प्रसारित की जा रही है पर शासन द्वारा की गई इस कार्रवाई का वास्तविक कारण किसी को पता नहीं चल सका है और मात्र अटकलो के आधार पर ही खबरे चलाई जा रही है।
शासन की इस बहुचर्चित करवाई का वास्तविक कारण अब गिरीश न्यूज़ आप सबके सामने खोलने जा रहा है
अरुण चंद्रवंशी पर शासन द्वारा जो यह कार्रवाई की गई है दरअसल उसके पीछे उज्जैन संभाग आयुक्त का एक प्रतिवेदन है जिसमें प्रतिवेदित किया गया है कि श्री चंद्रवंशी, उप तहसील झोटा के न्यायालय नायब तहसीलदार बीजा नगरी के प्रकरण क्रमांक 0042-37/2024-25 में दिनांक 21/05/2024 को प्रोसीडिंग लिखित की जाकर विज्ञप्ति जारी की गई तथा 21/05/2024 को ही संबंधित पटवारी को बटवारा फर्द प्रस्तुत करने हेतु नोटिस जारी किया गया। श्री चंद्रवंशी द्वारा दिनांक 19/06/2024 को बटवारा स्वीकृत किया गया जबकि उक्त दिनांक को श्री चंद्रवंशी बीजानगरी के प्रभार में नहीं थे। श्री चंद्रवंशी द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर कार्य किया गया इसके साथ ही आयुक्त, उज्जैन संभाग उज्जैन ने अपने प्रतिवेदन में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि श्री अरुण चंद्रवंशी, तत्कालीन परिवीक्षाधीन नायब तहसीलदार, जिला नीमच वर्तमान रतलाम अपने नियंत्रणकर्त्ता अधिकारियों के विरुद्ध शिकायतें मध्यप्रदेश स्तर के वरिष्ठ अधिकारी एवं आयोग में करने के आदि है । श्री अरुण चंद्रवंशी द्वारा महिला कर्मचारी के साथ दुर्व्यवहार करने, अपने अधिकारिता के बाहर जाकर तहसीलदार के अधिकारिता का उपयोग करने, तहसीलदार की पदमुद्रा का दुरुपयोग करने, वांछित पदस्थापना की प्राप्ति हेतु अनैतिक दबाव बनाने, नियंत्रणकर्ता अधिकारियों के निर्देशों की अवहेलना करने, राजस्व प्रकरणों में असावधानी करने तथा धार्मिक आयोजन तथा साम्प्रदायिक तनाव की स्थिति में समय-समय पर कार्यालयीन दण्डाधिकारी के कर्तव्य निर्वहन नहीं करना, कानून व्यवस्था की स्थिति निर्मित करना, स्वेच्छाचारिता एवं मनमानी से कार्य करने आदि हेतु परिवीक्षाधीन के दौरान किए गए, जो अशोभनीय होकर शासन की छवि को धूमिल करते हैं।
आयुक्त उज्जैन संभाग के इस प्रतिवेदन के आधार पर ही शासन द्वारा अरुण चंद्रवंशी के डिमोशन का आर्डर पास कर दिया गया है।

हालांकि आयुक्त द्वारा प्रस्तुत इस प्रतिवेदन में कई विरोधाभासी बातें हैं क्योंकि प्रतिवेदन के अंत में जो अधिकारिता एवं अनुशासनहीनता जैसे आरोप अरुण चंद्रवंशी पर लगाए गए हैं उन्ही आरोपो को प्रतिवेदन में प्रारंभ में सिद्ध ना होना पाया गया है पर इसके बाद भी अंततः इन आरोपों के आधार पर इस तरह की कार्रवाही करना कई तरह के सवाल खड़े कर रही है।

*”अब इस पूरे प्रकरण का एक दूसरा पहलू”*

डिमोटेड किए गये नायब तहसीलदार का दावा है कि उन्हें नायब तहसीलदार तो बना दिया गया था, लेकिन नायब तहसीलदार को दिए जाने वाले अधिकार के तहत कोर्ट नहीं दी, गाड़ी भी नहीं दी और सरकारी घर की सुविधा भी नहीं दी। नीमच जिले में आवास खाली होने पर भी नहीं मिला तो उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी जुटाई और इसके आधार पर प्रधानमंत्री को शिकायत कर हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी थी। मामले में कोर्ट ने शासन को सकारात्मकता के साथ श्री चंद्रवंशी के पक्ष में निर्णय करते हुए आदेश पारित करने का आर्डर दिया। जिस पर राज्य शासन ने 6 माह कर दिए, जिस पर दूसरी बार हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर की , यह याचिका अभी विचाराधीन है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी एक पत्र 2020 में मुख्य सचिव को भेजा था।
इस वजह से उन्हें न्याय देने की बजाय शान द्वारा झूठे आरोप लगाकर उनके डिमोशन का ऑर्डर पास कर दिया गया है। चंद्रवंशी ने कहा है कि वे शासन के आदेश के विरुद्ध हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे और न्याय मांगेंगे। इससे यह मामला अब एक नई कानूनी लड़ाई का रूप लेता दिखाई दे रहा।
इसके अलावा अरुण चंद्रवंशी ने बताया कि जब पांच साल पहले वे नीमच में पदस्थ थे तब से उनकी प्रशासन से लड़ाई चल रही है।
* फेसबुक पर कलेक्टर की एक टिप्पणी को लेकर उन्होंने शिकायत की थी।
* मामले में उनका वेतन रोक दिया गया था। इस पर उन्होंने एक अवमानना याचिका लगाई थी।
* नीमच जिले में आवास न मिलने पर राज्य सूचना आयोग को शिकायत की थी। आयोग ने कड़ा तेवर अपनाकर जानकारी देने को कहा था।
* सूचना के अधिकार में जानकारी मिली कि आवास खाली हैं फिर भी उन्हें नहीं दिया।
* गाड़ी की सुविधा न देकर चंद्रवंशी की ड्यूटी एक दूरस्थ मंदिर में लगा दी गई थी।
इसके पश्चात मैंने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को कलेक्टर अजय गंगवार और एडीएम विनय कुमार धोका के कारनामों के संबंध में केंद्र और राज्य शासन के 20 से ज्यादा विभागों में 49 पेज की शिकायत की थी। मेरे द्वारा की गई शिकायत के संबंध में प्रधानमंत्री कार्यालय से राज्य शासन के मुख्य सचिव को पत्र क्रमांक PMOPG/D/2020/001263 दिनांक 13.1.2020 पत्र भेज कर शिकायत पर उचित कार्रवाई करने करने को पीएमओ ने मध्यप्रदेश शासन के मुख्य सचिव को लिखा था। प्रधानमंत्री कार्यालय का पत्र मुख्य सचिव के कार्यालय में नहीं मिला ऐसा मुख्य सचिव कार्यालय के लोक सूचना अधिकारी ने लिख कर जवाब दिया। न्याय प्राप्त करने के लिए प्रत्येक नागरिक को कोर्ट जाने का अधिकार है। मैं भी न्यायालय गया न्यायालय में याचिका क्रमांक 24517/2023 प्रस्तुत की। जिस पर दिनांक 31.10.2023 को डिसीजन करते हुए माननीय न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता के सेवा लाभों के संबंध में 4 सप्ताह में समुचित आदेश पारित करें। शासन द्वारा हाईकोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया तब मैंने पुनः हाईकोर्ट में याचिका क्रमांक 1969/2024 प्रस्तुत की। जिस पर माननीय न्यायालय ने फिर‌ शासन के अधिकारियों को आदेश दिया कि चार सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता का सकारात्मक निराकरण करें और निराकरण नहीं करने की स्थिति में अवमानना का जोखिम आपको उठाना होगा।

समयावधि बीतने के उपरांत मैंने डबल अवमानना याचिका क्रमांक 4705/2024 प्रस्तुत की। जिसमे मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव सामान्य प्रशासन विभाग, प्रमुख सचिव राजस्व, नीमच जिले के दो डिप्टी कलेक्टर पक्षकार है‌। जिस पर मध्यप्रदेश शासन राजस्व विभाग ने दुर्भावना पूर्वक मेरे डिमोशन का आदेश निकाला है। माननीय हाईकोर्ट के सख्त डिसीजन के बाद शासन ने सकारात्मक निराकरण करने की बजाय नकारात्मक निराकरण कर दिया है। जबकि अभी अवमानना याचिका 4705/2024 लंबित ही है। मुझे आवास खाली होने के बाद भी नहीं दिया गया। केवल 387 रूपये आवास भत्ता दिया जाता है। 387 में कौन सा मकान किराये पर मिलता है। मैं 8000 रूपये प्रतिमाह 10 महीने तक किराये पर रहा मुझे यात्रा भत्ता नहीं दिया, परिवहन भत्ता नहीं दिया । उसे लेकर पिटीशन क्रमांक 3338 कोर्ट में लंबित है। एलएलबी होने के बाद भी मुझे नीमच में कोर्ट और गाड़ी की सुविधा भी नहीं दी गई थी।
पूरे प्रकरण में एक बात निश्चित है कि अब अरुण चंद्रवंशी शासन के उन्हें डिमोशन करने के आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट जाने वाले हैं और यह देखना रोचक होगा कि इस लड़ाई में आखिर किसकी जीत होती है और किसकी हार होती है।

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