आगर मालवा-
प्रकरण की कायमी के लिए ₹ 3 लाख की रिश्वत लेने का बहूचर्चित मामला जो थाना कोतवाली आगर पर सामने आया है मैं बवाल के बाद जहां एक और आरोपी दोनों हेड कांस्टेबलों को एसपी द्वारा निलंबित कर दिया गया वहीं विधायक मधु गहलोत की चेतावनी के बाद रिश्वत की रकम भी पीड़ित फरियादी पक्ष को वापस लोटा दी गई हे।
अब जब रिश्वत की रकम वापस लौटा दी गई है तो इससे एक बात तो स्पष्ट और सिद्ध हो चुकी है के प्रकरण में रिश्वत ली गई थी तो क्या अब वास्तव में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 में लोक सेवकों पर कार्रवाई कर उचित दंड भी दिया जाएगा ?
क्योंकि जो अपने पद का गलत इस्तेमाल करते हुए अपनी सैलरी से ज्यादा पैसे गैरकानूनी तरह से कमाते हैं, लोगों से रिश्वत लेते हैं वह एक अपराध है और यदि अपराध सिद्ध हो जाए तो इसके लिए दोषी को भ्रष्टाचार निवारण
अधिनियम,1988 (Prevention of Corruption Act) की धारा 7 के तहत सजा भुगतनी पड़ती है।
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 ( Prevention of
Corruption Act) की धारा 7 में लोक सेवक द्वारा रिश्वत लेने पर अपराध को परिभाषित किया गया है. धारा 7 के तहत अगर कोई लोक सेवक किसी भी तरह की कोई रिश्वत लेता है तो वह एक दंडनीय अपराध माना जाएगा और इसके लिए दोषी को तीन साल से सात साल तक की जेल के साथ जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
हालांकि इस प्रकरण में जितनी बड़ी रिश्वत की रकम ली गई है उसको देखकर आम चर्चा है कि इतनी बड़ी रिश्वत की राशि मामूली पुलिसकर्मियों द्वारा अपने स्तर से ही नहीं ले ली गई होंगी जरूर यह मामला नीचे से ऊपर तक गया होगा और यदि ऐसा है तो फिर एक बार हमें इस प्रकरण में उसी तरह की लीपापोती देखने को मिलेगी जैसे कि अक्सर शासकीय कार्यों में हुए भ्रष्टाचार के मामलों में अधिकारियों द्वारा एक दूसरे के प्रति भाईचारा निभाते हुए देखने को मिलती है।
लगता है अब इस प्रकरण का निराकरण भी रोचक होगा ?